कविता और ग़ज़ल
शनिवार, 2 मई 2020
चील बन गया सत्ता
दाद देता हूँ चील की नज़र का
सैकड़ों मिल दूर से देख
लेता है लाश
और झपट पड़ता है
बना लेता है आहार
बुधारू की ज़मीन
ही नहीं बुधारू
भी उस चील का
शिकार हो चुका है
सत्ता शायद चील बन गया है
- कौशल तिवारी
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