बुधवार, 27 मई 2020

बापू ...

आजकल
गोडसे के लोग
फुलवारी में फिर उतरने लगे हैं
सब कुछ चर जाना
चाहते हैं
तालाबों को कीचड़ में तब्दील कर
कमल खिलाना
चाहते हैं
वे चाहते हैं
फुलवारी में सिर्फ़ एक रंग
का फ़ुल ही खिले
वे हुंकार भरते हैं
ताकि इस हुंकार से
सच दुबक जाए
पर यह कभी न हो सका है
नफ़रतों की हवा में कोई
नहीं जी सकता
प्यार और अहिंसा ही
जीवन का आधार है
इसलिए बापू से
पुरे मानव समाज को
प्यार है
- कौशल तिवारी

शनिवार, 2 मई 2020

चील बन गया सत्ता


दाद देता हूँ चील की नज़र का 
सैकड़ों मिल दूर से देख 
लेता है लाश 
और झपट पड़ता है 
बना लेता है आहार 
बुधारू की ज़मीन 
ही नहीं बुधारू
भी उस चील का 
शिकार हो चुका है 
सत्ता शायद चील बन गया है 
- कौशल तिवारी 

बच्चे नहीं है न साहेब!



हाँ मैं मज़दूर हूँ साहेब
जो काँधे में बच्चों को 
और सिर में पोटली उठाये 
पाँच-सात सौ कोस चल सकता हूँ
लेकिन आप क्या हो ! साहेब
इन बरसों मे किसने सोचा है हमारे लिए 
आप भी क्यों सोचते?
जान का डर किसे नहीं होता 
लेकिन कोरोना का डर हमसे पहले 
आपको था साहेब 
अपनी जान के डर से होली नहीं मनाई 
होली हमने मनाई 
ताकि ख़ुशियों का रंग 
पूरी कायनात में बिखर जाये
आप तो ख़ुशियाँ लुट रहे है साहेब 
जब इतना भयावह का पता था 
तब ही हमारे लिये निर्णय 
क्यों नहीं लिया साहेब 
ख़ाली जेब दान के दो समय के 
खाने के सहारे कोई कैसे 
रह सकता था साहेब 
पत्नी रह भी ले लेकिन 
बच्चे कैसे रहेंगे साहेब 
आपके बच्चे नहीं है न साहेब !!!!
-कौशल तिवारी 
( मज़दूर दिवस - २०२० )